वैज्ञानिकों की चेतावनी: धूल के कणों से भी फै ल रहा कोरोना

हेल्थ डेस्क। कोविड-19 के संक्रमण को लेकर रोज नए-नए वैज्ञानिक अध्ययन सामने आ रहे हैं। शीर्ष चिकित्सा संस्थानों में से एक पीजीआई चंडीगढ़ के शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि कोरोना के तीव्र प्रसार की एक वजह वायरस का पराग कणों के साथ मिलना और फिर हवा के जरिये दूर तक पहुंचना हो सकता है।
पीजीआई चंडीगढ़ और पंजाब यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने यह शोध नवंबर में किया था जो हाल में साइंस जर्नल सस्टेनेबल सिटीज एंड सोसायटी में प्रकाशित हुआ है। यह शोध इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि कोरोना ऐसे समय में फैला है जब परागण की प्रक्रिया भी चरम पर होती है।
पीजीआईएमईआर चंडीगढ़ के जन स्वास्थ्य विभाग के प्रोफेसर एवं शोध के प्रमुख लेखक रविंद्र खाईवाल के अनुसार इस अध्ययन में पराग कणों के साथ कोरोना वायरस के मिल जाने तथा मौसमी स्थितियों के चलते उसके प्रसार को लेकर अध्ययन किया गया। यह पाया गया है कि कोरोना मिश्रित जैव पराग कण लंबी दूरी तक परिवहन कर सकते हैं। यह दूरी एक शहर से दूसरे शहर तक भी हो सकती है। लेकिन काफी कुछ मौसमी परिस्थितियों पर निर्भर करता है जिसमें तापमान, बारिश, आद्र्रता और हवा की गति प्रमुख है। बता दें कि एक दिन पूर्व ही लांसेट ने यह दावा किया कि कोरोना वायरस हवा के जरिये फैल सकता है। लेकिन लांसेट का शोध हवा से सीमित प्रसार की ओर इशारा करता है। जबकि यह अध्ययन परागकणों के जरिये कोरोना के लंबी दूरी के प्रसार की संभावना व्यक्त करता है।
शोधकर्ताओं ने दावा किया कि निपाह समेत करीब 40 किस्म के वायरस पराग कणों के साथ मिलकर लंबी दूरी तक हवा में जा सकते हैं। पराग कण उच्च जैविक कोशिकाओं द्वारा निर्मित यौन प्रजनन के लिए महत्वपूर्ण नर जैविक संरचनाएं हैं। इनका आकार 2-300 माइक्रोन तक होता है। आमतौर पर ये स्वयं स्थिर रहते हैं और हवा, कीड़े, पक्षी और पानी जैसे एजेंट द्वारा फैलाए जाते हैं। शोध में कहा गया कि कोविड प्रंबधन के लिए परागकणों की भूमिका पर और गहन अध्ययन किए जाने की जरूरत है।